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चीन की रिअर अर्थ मैग्नेट पाबंदी के बाद भारत में ईवी नीति पर पुनर्विचार की संभावना

India की आईसीई (Internal Combustion Engine) इकोसिस्टम को हो सकता है नुकसान

नई दिल्ली: भारत में नीति निर्माताओं के बीच अब तक बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों (BEVs) को बढ़ावा देने पर एकतरफा जोर दिया गया है, जिससे अन्य तकनीकों को नजरअंदाज किया गया। लेकिन अब इसमें बदलाव की संभावना है। इसका तत्काल कारण है चीन द्वारा 4 अप्रैल से लागू की गई दुर्लभ पृथ्वी मैग्नेट (Rare Earth Magnets) और संबंधित सामग्री पर निर्यात प्रतिबंध, जो वैश्विक वाहन निर्माताओं, खासकर भारत में, को प्रभावित करने लगा है।

बीजिंग के इस कदम के बाद भारत सरकार के उच्चतम स्तरों पर यह चर्चा शुरू हुई है कि वाहन प्रौद्योगिकियों का चयन करते समय कई भू-राजनीतिक मुद्दों को नए सिरे से देखने की जरूरत है। यह सवाल उठ रहा है कि क्या केवल BEV को ही अपनाना भारत को चीन की तकनीकी निर्भरता में धकेल देगा, जिससे भारत की खुद की आईसीई (Internal Combustion Engine) ऑटो इंडस्ट्री और इससे जुड़े सहयोगी इकोसिस्टम को नुकसान हो सकता है।

यह एक चेतावनी है

चीन के प्रतिबंध एक चेतावनी की तरह हैं। यह समय भी इस चेतावनी के लिए उपयुक्त है — जैसे किसी नशे की लत चढ़ने से पहले ही उसकी आपूर्ति बंद हो जाए। नीति पर पुनर्विचार शुरू हो गया है।

BEV नीति पर जोर

भारत की इलेक्ट्रिक मोबिलिटी योजना अब तक मुख्य रूप से लिथियम-आयन बैटरी से संचालित BEV वाहनों पर केंद्रित रही है, जिसे भविष्य के लिए सबसे व्यवहारिक ऊर्जा भंडारण विकल्प माना गया। BEVs ऐसे वाहन होते हैं जिनमें कोई आंतरिक दहन इंजन (ICE) या फ्यूल टैंक नहीं होता — जैसे कि भारत में टाटा नेक्सॉन EV, BYD Atto3 या महिंद्रा BE6, और विदेशों में निसान लीफ या टेस्ला मॉडल S।

फिलहाल सरकारी नीति BEVs को खुलकर समर्थन देती है — इन पर सिर्फ 5% टैक्स लगता है जबकि अन्य वाहनों पर 43-48% टैक्स तक लगाया जाता है। केंद्र सरकार का लक्ष्य EV30@2030 है, जिसके तहत अगले पांच सालों में 30% निजी कारें, 40% बसें, 70% वाणिज्यिक वाहन और 80% दोपहिया/तीनपहिया वाहन इलेक्ट्रिक हों।

अब यह सब समीक्षा के दायरे में आ सकता है।

चीन के प्रतिबंध और उनकी चिंता

चीन के प्रतिबंधों के चलते वाहन निर्माताओं, खासकर ईवी निर्माताओं को आवश्यक घटकों की संभावित कमी का सामना करना पड़ सकता है, जिससे कीमतों में वृद्धि और उत्पादन में देरी की आशंका है। यह उस समय हो रहा है जब यह उद्योग अभी विकास के शुरुआती चरण में है और लागत-संवेदनशील है।

भारतीय वाहन उद्योग ने सरकार से संपर्क कर प्रक्रिया को सुगम बनाने की बात शुरू की है ताकि चीन से Rare Earth Magnets की आपूर्ति जारी रह सके। चीन ने इनका पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया है, लेकिन प्रक्रिया इतनी जटिल बना दी है कि आपूर्ति में देर और रुकावट संभव है। इसके लिए भारत के वाणिज्य मंत्रालय (DGFT) और विदेश मंत्रालय से अनुमति लेनी होती है, और कई मामलों में चीन एंड-यूज़ सर्टिफिकेट की भी मांग कर रहा है।

RE मैग्नेट्स का महत्व

Rare Earth Magnets, खासकर NdFeB (Neodymium-Iron-Boron) मैग्नेट्स, ईवी मोटर्स में बेहद जरूरी होते हैं। ये शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र प्रदान करते हैं जो ट्रैक्शन मोटर्स सहित कई इलेक्ट्रिक मोटर्स में आवश्यक होते हैं। ये मैग्नेट्स पावर स्टीयरिंग, वाइपर मोटर्स और ब्रेकिंग सिस्टम जैसे पारंपरिक ICE वाहनों में भी जरूरी हैं।

हालांकि Rare Earth धातुएं केवल चीन तक सीमित नहीं हैं, लेकिन इनके प्रोसेसिंग में चीन का दबदबा है। कभी यह बढ़त अमेरिका और जापान के पास थी, लेकिन अब चीन इस पर हावी है। जापान ने हाल ही में कुछ हिस्सों में उत्पादन फिर शुरू किया है, लेकिन अमेरिका और भारत अभी भी चीन पर निर्भर हैं।

बीजिंग का दबदबा

चीन ने मई में सात भारी Rare Earth धातुओं जैसे समारियम, गैडोलिनियम, टेरबियम, डिस्प्रोसियम, ल्यूटेटियम, स्कैंडियम और इट्रियम के साथ-साथ Rare Earth Magnets के निर्यात को प्रतिबंधित किया था। यह अमेरिकी टैरिफ के जवाब में किया गया था। ये प्रतिबंध अभी तक पूरी तरह हटाए नहीं गए हैं।

चीन पहले ही अमेरिका को गैलियम, जर्मेनियम, एंटिमनी जैसे हाई-टेक और सैन्य उपयोग वाली सामग्रियों का निर्यात बंद कर चुका है।

बैटरी आपूर्ति में चीन का प्रभुत्व

Rare Earth के अलावा, ईवी बैटरी की आपूर्ति चेन में भी चीन की मजबूत पकड़ है। भारत की EV नीति ऐसे समय में आ रही है जब वह वैश्विक लिथियम वैल्यू चेन में प्रवेश की कोशिश कर रहा है। भारत में EV बैटरियों की मांग 2030 तक 30% CAGR से बढ़ने का अनुमान है, जिसके लिए लगभग 50,000 टन लिथियम की जरूरत होगी।

लेकिन वैश्विक लिथियम उत्पादन का 90% हिस्सा चिली, अर्जेंटीना, बोलीविया, ऑस्ट्रेलिया और चीन से आता है। वहीं कोबाल्ट और निकल जैसी सामग्रियां कांगो और इंडोनेशिया में मिलती हैं। इससे भारत की पूरी निर्भरता सीमित देशों के आयात पर होगी। जबकि लिथियम-आयन के विकल्प खोजे जा रहे हैं, लेकिन व्यवहार्यता और चीन की तकनीकी बढ़त चिंता का विषय है। चीन बैटरी तकनीक में सबसे आगे है — इसके पास पूरी सप्लाई चेन और CATL, BYD जैसी कंपनियां हैं।

नीति संबंधी अन्य चिंताएं

BEV पर केंद्रित नीति के साथ कुछ और चिंताएं भी जुड़ी हैं:

  • सब्सिडी की समस्या: वैश्विक अनुभव (नॉर्वे, अमेरिका, चीन) से पता चलता है कि EV अपनाने में सरकारी सब्सिडी अहम भूमिका निभाती है। भारत जैसे विकासशील देश में यह सब्सिडी मध्यम या उच्च-मध्यम वर्ग तक ही सीमित रह जाती है, खासकर जब यह कर छूट के रूप में दी जाती है।
  • चार्जिंग नेटवर्क की कमी: वर्ल्ड बैंक का विश्लेषण बताता है कि EV चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश, वाहन खरीद सब्सिडी से 4-7 गुना अधिक प्रभावी है। नॉर्वे और चीन ने तेजी से चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया, भारत अब भी इस मोर्चे पर पीछे है।
  • बिजली का स्रोत: EV अपनाने वाले कई देशों में बिजली नवीकरणीय स्रोतों से आती है — जैसे नॉर्वे में 99% हाइड्रोपावर। भारत में अभी भी बिजली का बड़ा हिस्सा कोयले से आता है। इसलिए tailpipe उत्सर्जन तो भले ही न हो, लेकिन बिजली उत्पादन से प्रदूषण जारी रहेगा।

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