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अनिल अंबानी समूह पर ईडी की छापेमारी ने खोली वित्तीय सिस्टम की पोल



New Delhi / Mumbai: देश की वित्तीय व्यवस्था पर एक बार फिर से गहरा सवालिया निशान लग गया है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गुरुवार को अनिल अंबानी समूह की कंपनियों पर छापेमारी कर ₹3,000 करोड़ से ज्यादा की अवैध बैंक ऋण हेराफेरी का भंडाफोड़ किया है। मुंबई और दिल्ली में 35 से अधिक स्थानों पर की गई यह छापेमारी केवल एक कारोबारी समूह की गड़बड़ियों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरा वित्तीय निगरानी तंत्र कैसे फेल हो गया, यही इस समय सबसे बड़ा प्रश्न बनकर उभरा है।

छापेमारी से उठे बड़े सवाल

प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि रिलायंस अनिल अंबानी समूह की कंपनियों ने यस बैंक से लिए गए भारी-भरकम ऋणों को कई शेल कंपनियों में डायवर्ट कर दिया। बैंक के नियमों की अनदेखी कर, बिना किसी उचित आंतरिक समीक्षा या सुरक्षा दस्तावेजों के ये लोन मंजूर किए गए।

पर असली चिंता की बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम को देश की प्रमुख नियामक एजेंसियों ने वर्षों तक अनदेखा किया।

नियामक संस्थाओं की चूक या मिलीभगत?

ईडी की कार्रवाई सीबीआई की प्राथमिकी के आधार पर की गई, पर जांच में यह सामने आया है कि सेबी, राष्ट्रीय आवास बैंक (NHB), राष्ट्रीय वित्तीय लेखा प्राधिकरण (NFRA) और यहां तक कि बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे संस्थानों को इन गड़बड़ियों की भनक पहले ही लग चुकी थी।



यस बैंक लोन घोटाला: अंदर से मिला संरक्षण?

ईडी की रिपोर्ट में यस बैंक की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। जांच में सामने आया कि:

* लोन स्वीकृति से पहले ही रकम जारी कर दी गई
* क्रेडिट अप्रूवल मेमो को पीछे की तारीख में जारी किया गया
* एक ही पते, निदेशक और वित्तीय प्रोफाइल वाली कंपनियों को भारी भरकम लोन दिए गए
* और बिना किसी ड्यू डिलिजेंस के निवेश स्वीकृत किए गए

इन तमाम अनियमितताओं से संकेत मिलता है कि बैंकिंग सिस्टम के अंदर से ही इस हेराफेरी को सहमति या संरक्षण प्राप्त था।

RHFL की विस्फोटक ग्रोथ पर संदेह

रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड (RHFL) ने केवल एक साल में अपने कॉरपोरेट लोन पोर्टफोलियो को ₹3,742 करोड़ से सीधा ₹8,670 करोड़ तक पहुँचा दिया।

इतनी बड़ी रकम इतनी जल्दी कैसे स्वीकृत की गई?
किसने इसके ऑडिट पर निगरानी रखी?
क्यों किसी एजेंसी ने सवाल नहीं उठाया?

क्या ईडी की कार्रवाई काफी है?

इस पूरे मामले से एक गहरा सवाल निकल कर सामने आता है –
क्या ईडी की यह छापेमारी ही इस गहराई तक फैले आर्थिक अपराध पर लगाम कसने के लिए पर्याप्त है?

या फिर ज़रूरत है एक व्यापक संस्थागत सुधार की, जहाँ बैंक, ऑडिट संस्थाएं, नियामक और प्रवर्तन एजेंसियां मिलकर पारदर्शिता और जवाबदेही का नया मॉडल खड़ा करें।

जुर्माने पर न्यायिक टिप्पणी या प्रतीकात्मक कार्रवाई?

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में अनिल अंबानी पर टैक्स नोटिस मामले में जल्दी सुनवाई मांगने पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इतने बड़े घोटाले के सामने यह जुर्माना महज़ एक प्रतीकात्मक कदम है, जो न्यायिक व्यवस्था की सीमाओं को भी रेखांकित करता है।

अनिल अंबानी समूह पर ईडी की छापेमारी एक गंभीर चेतावनी है कि देश का वित्तीय ढांचा अब केवल संस्थानों की छवि पर नहीं, बल्कि उनकी सक्रियता और ईमानदारी पर निर्भर है। जब तक बैंकिंग और ऑडिट व्यवस्था को जवाबदेह और पारदर्शी नहीं बनाया जाता, तब तक इस तरह की घोटालेबाज़ी बार-बार सामने आती रहेगी — और अंततः नुकसान आम जनता और देश की अर्थव्यवस्था को ही उठाना पड़ेगा।

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