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India from Pokhran to Operation Sindoor: Story in 16 points

कहानी आत्मनिर्भर भारत की

Jaipur / Delhi

⚙️ आत्मनिर्भर रक्षा के लिए आत्मनिर्भर खनिज आवश्यक – 16 मुख्य बिंदु

  1. जब हम राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा प्रणालियों की बात करते हैं, तो हमारा ध्यान मिसाइलों, लड़ाकू विमानों और ड्रोन पर जाता है, लेकिन इन सबको बनाने के लिए आवश्यक मूलभूत तत्व ज़मीन के नीचे छिपे खनिज और धातुएँ होती हैं।

  2. किसी भी देश की रक्षा क्षमता का आधार उसके पास उपलब्ध रणनीतिक एवं महत्वपूर्ण खनिज संसाधन होते हैं।

  3. आधुनिक लड़ाकू विमान जैसे तेजस Mk1A और F-35 में टाइटेनियम, निकल, कोबाल्ट तथा दुर्लभ अर्थ धातुएँ (neodymium, samarium, dysprosium) बड़े पैमाने पर उपयोग होती हैं।

  4. भारत का स्वदेशी स्टील्थ विमान AMCA बनाने का प्रयास तभी सफल हो सकेगा जब देश में रेनियम, टैंटालम और कोबाल्ट जैसे महत्वपर्ण खनिजों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।

  5. ड्रोन जैसे Rustom-II, CATS Warrior और Heron में लिथियम-आयन बैटरियों के अलावा ग्रेफाइट, गैलियम और जर्मेनियम जैसे खनिजों की भी आवश्यकता होती है।

  6. रूस-यूक्रेन, भारत-पाक और ईरान-इस्राइल संघर्षों ने यह साबित किया कि आधुनिक युद्धों में छोटे-आकार की तकनीक जैसे ड्रोन भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और इनके लिए भी महत्वपूर्ण खनिजों की ज़रूरत होती है।

  7. भारतीय मिसाइलों (अग्नि, पृथ्वी, ब्रह्मोस) में ताप, दाब एवं वेग को नियंत्रित करने हेतु टंगस्टन, नायोबियम, टैंटालम और बेरीलियम जैसी धातुएँ उपयोग होती हैं।

  8. पोखरण परमाणु परीक्षण (1974 व 1998) में यूरेनियम, लिथियम-6, ज़िरकोनियम और बेरीलियम ने निर्णायक भूमिका निभाई।

  9. मई 2025 में हुए ऑपरेशन सिंदूर में पेजोरा, OSA-AK और Akash जैसी प्रणालियों में टाइटेनियम, टंगस्टन, एल्युमीनियम और स्टील मिश्र धातुओं का उपयोग हुआ।

  10. आकाश मिसाइल में कॉपर वायरिंग, बोरॉन-आधारित प्रोपैलेंट और टंगस्टन आधारित पार्ट्स का प्रयोग किया गया जो भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।

  11. दुर्लभ अर्थ धातुएँ, गैलियम और ग्रेफाइट पर भारत की आयात निर्भरता रक्षा क्षेत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है।

  12. गैलियम और जर्मेनियम के निर्यात पर चीन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने दिखाया कि आयात पर निर्भरता आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकती है।

  13. भारत में ऐसे खनिजों के भंडार (जैसे अरुणाचल व ओडिशा में ग्रेफाइट, समुद्री रेत में rare earth, जम्मू-कश्मीर में लिथियम) मौजूद हैं, पर उनका दोहन एवं प्रसंस्करण बढ़ाने की आवश्यकता है।

  14. इस उद्देश्य से KABIL (Khanij Bidesh India Ltd) बनाई गई है जो अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका जैसे देशों के साथ सहयोग कर रही है।

  15. DRDO और DMRL जैसे संस्थान रक्षा उपकरणों के लिए स्वदेशी विकल्प विकसित करने पर कार्य कर रहे हैं।

  16. निष्कर्षतः — यदि हम स्वावलंबी रक्षा प्रणाली चाहते हैं, तो हमें सबसे पहले स्वावलंबी खनिज एवं खनन क्षेत्र तैयार करना होगा। असली ताकत जमीन के नीचे छिपे खनिजों में है — न कि केवल आसमान में उड़ते विमान और मिसाइलों में।

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